* मन *
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कभी खुशियों के साथ बिना पंख के नील गगन में उड़ता।
कभी दर्दों के पत्थरों की चोट से धरती पर पड़ा रोता।
पल में रोता -पल में हँसता ये मन--ये मन ----.
सागर की लहरों के जैसे -- पल पल में अपने विचार बदलता ये मन।
कभी ख़ुशी में झूम उठता बिना पायल के ये मन -----
कभी बिना पानी गम के सागर में डूब जाता ये बेचारा मन --.
कभी ख़ुशी की चाहत में दौड़ता , कभी गम से दूर भागता ये बेचारा मन।
दौड़ता तो हर कोई है किसी न किसी चाहत के लिए।
ये बेचारा मन भी दौड़ता है कुछ पल भर की ख़ुशी और प्यार के लिए।
जो बेरहम दिल ओर मतलबी होते है वो ठुकरा देते है।
जो प्यार की कदर करते है और इंसानियत के धनि होते है वो सीने से लगा लेते है।
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* बिनेश कुमार * ३/ ९/ १३ *
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