* असली -नकली का दिखावा *
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आज जो बाजार में दिखता है वही बिकता है।
जो दरवाजों में बंद रहता है वो कभी नहीं बिकता है।
जब किसी के जनाजे पे दिखावटी आंसुओं से रोता है।
उसे वहां पर मौजूद हर सख्स देखता है।
जो रात के अंधरे में दिल के आंसुओं से रोता है।
अपनों से बिछड़ जाने के गम में।
उन्हें कभी कोई देख ही नहीं पाता है।
आज झूठा दिखावा बाज़ार की रौनक बन गया है।
उसकी असलियत क्या है उसे कोई समझना नहीं चाहता है।
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* बिनेश कुमार * १९/९/२०१३ * प्रात : ३ बजे *
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