* मेरी चाहत *
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मेरी चाहत नही है किसी को हासिल करने की।
मेरी चाहत है ये प्यार देकर के मैं प्यार दुनिया से पाऊं।
मेरी चाहत नहीं है किसी की दौलत को हडपने की।
बस मेरी चाहत है इंसानियत का रिश्ता दिल से निभाने की।
वे बेसक मुझे भूल जायें अपना बिता हुआ कल समझकर।
मैं आज भी याद उन्हें करता हूँ अपना आज समझकर।
मेरी ये कोशिश है अपने कर्मों के दमपर अजनबियों के दिल में।
अपने रिश्तों के जैसी उनके दिल में जगह बनाऊं।
मैं अपने नाम से नहीं कर्मों अपनी पहचान बनाऊं।
मेरी चाहत है रोज़ नहीं तो कभी एक रोज़ तो मैं उन्हें याद आऊं।
मेरी चाहत नहीं किसी को धोखे -जबरजस्ती ,ताकत से अपना बनाऊं।
मेरी ये चाहत है प्यार -मोहब्बत ,ओर इंसानियत के रिश्ते से अपना बनाऊं।
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* बिनेश कुमार * २३/९/२०१३ * सुबह ९ बजे *
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