Monday, 16 September 2013

neend

 * नैनों  में  नींद *
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तुम आस्था ,वासना  हो मेरे मन की।
तुम तन मन से बसी हो मेरे मन में।
तुम जब मेरे पास आती हो।
तुम्हारे  आने की आहट मुझे लग जाती है।
जब तुम चाहो मेरे नैनों  में आकर  बस जाती हो।
हम दोनों एक दुसरे में लिप्त होकर समा  जाते हैं।
ना शीश महल ,ना मखमल का बिस्तर तुम्हारी  चाहत है।
सच्चा प्रीत  है तुम्हारा मुझसे।
जंगल में खुले आसमां  के निचे पास मेरे  चली आती हो।
तुम मेरी मैं  तुम्हारी  चाहत हूँ।
फिर क्यूँ तुम दूर मुझसे चली जाती हो।
कड़कती  तेज धुंप में भी तुम मुझे प्यारी लगती हो।
सजा भोजन का थाल भी मुझे भाता  नहीं।
जब तुम पास मेरे नैनों  में होती हो।
सच्ची  साथी हो तुम मेरी।
वे वक्त तुम नैनों में मेरी चली आती हो।
जब मैं  किसी ओर  को चाहता हूँ।
तुम धीरे से नैनों से दूर जाकर फ़र्ज़ अपना  निभाती हो।
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 * बिनेश कुमार  * १६/९/२०१३ * प्रात : ३ बजे।

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