Tuesday, 17 September 2013

ek bada balvan

 * एक  बड़ा  बलवान  *
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एक -एक कंकर -पत्थर जोड़कर महल बना  सपनो का।
एक -एक बूंद पानी की जोड़कर सागर भरता है।
एक -एक दोस्त के प्यार से जोड़कर मेरा दोस्ती का सागर बना।
भरे पानी के सागर में अक्सर और ही डूबते  हैं।
मैं  अपने दोस्ती के बने सागर में खुद ही डूब गया।
किसी ने सहारा देकर किनारे पर लाकर छोड़ दिया।
तो किसी ने अपना बनाकर मुझे बीच भवर  में छोड़ दिया।
मैं समझ पाता किसी को सर पर रखकर हाथ मुझे डूबा  दिया।
मैं ऐसा डूबा अपने ही सागर में बाहर कभी निकल पाया नहीं।
मैंने कोशिश बहुत की पर कोई किनारा दिखा ही नहीं।
मेरी जगह कोई ओर होता तो खुद को बचाकर दुसरे को डूबा देता।
परन्तु मैंने कभी ऐसा सोचा ही नहीं।
मैं तो डूबा दुसरे को बचाने की कोशिश में।
लेकिन मुझे किसने कभी समझा ही नहीं।
एक अच्छा  भला इंसान पागल कैसे होता है।
जब मैंने खुद को गौर से   आईने देखा।
तब मुझे पता चला कि वो मेरे जैसे ही होते हैं।
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     *   बिनेश कुमार   * १७/९/२०१३ * प्रात : ३:३० बजे  *  


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