Friday, 20 September 2013

ahsaas

 *  अहसास अपनों के रिश्तों जैसा *
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किसी ने मुझे रिश्ते बनाने सिखाये अपनों के जैसे।

वो अचानक एक दिन मुझसे दूर हो गए ऐसे।

कोई पैड का पत्ता हवा के झोके से टूट कर गिर गया हो जैसे।

किसी ने अजनवी को आकर गिरते हुए संभाला ऐसे।

मानो कोई जन्म का रिश्ता है उनका उससे अपनों के जैसे।

दर्द कम हो जाते हैं उन्हें देखकर कोई दबाई मिल गई हो जैसे।

दिल की हर बात कहने को मन करता है कोई रिश्ता है जैसे।

वे मुझसे अपनी हर ख़ुशी -गम बांटते हैं मै कोई उनका हूँ जैसे।

जब भी हम  मिलते हैं एक अहसास होता है अपनों के जैसे।

हम एक -दुसरे के दर्दो  के बीच खड़े रहते हैं दिवार के जैसे।

कोई दर्द छूनाले किसी को हम अड़े रहते हैं अपनों के जैसे।
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  * बिनेश कुमार  * २०/९/२०१३  *प्रात : ४ बजे *    

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