* न जाने क्यूँ *
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न जाने क्यूँ खुशियों के सागर झील बनने लगे हैं।
क्यूँ दर्दों की छोटी छोटी झील सागर बनने लगी हैं।
जिधर हम देखते हैं आँखों में आंसू दिल में दर्द ही दिखते हैं क्यूँ।
दुनिया में कदम -कदम पे दर्द देने वाले खड़े मिलते हैं क्यूँ।
हम मन में ख़ुशी की उम्मीद लेकर हर एक कदम पे आगे बढ़ते हैं।
कुछ कदम साथ चलकर ख़ुशी देने वाले ही दर्द बन जाते हैं क्यूँ।
जिन्दगी जीने के लिए हर किसी को मिलती है।
जिन्दगी से हारकर फिर हर कोई मौत को पसंद करता है क्यूँ।
शब्दों में भी वजूद में भी वो भारी है क्यूँ।
ख़ुशी ओर परेशानी में से परेशानी ही भारी है क्यूँ।
खुशियों के सागर चारों तरफ सूखने लगे है क्यूँ।
दर्दों की नदियाँ ओर सागर चारों ओर बहने लगी है क्यूँ।
ये संसार एक घर है हम सब परिवार के सदस्य हैं जिसके।
फिर हम एक दुसरे से प्यार मोहब्बत की बजाय नफरत करते हैं क्यूँ।
हम मन में बदले की भावना लेकर जिन्दगी भर जीते हैं क्यूँ।
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* बिनेश कुमार * २८/८/१३ *
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