Friday, 1 November 2013

* ॐ * मैं और मेरी तन्हाई *


* ॐ   *  मैं और मेरी तन्हाई  *
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* मैं और मेरी तन्हाई अक्सर एकांत में एक -दूसरे से ये बातें करते हैं।

ये दुनिया  ये रिश्ते आखिर क्या हैं , ये सिर्फ  महज एक दिखावा  है। .

जब इंसान का जन्म होता है वो बिकुल अकेला होता है।

रिश्ते तो जन्म के बाद बनते हैं --मतलब के लिए। ….

किसी को बेटा -बेटी , भाई -बहन,, तो  किसी को पति - पत्नी  चाहिए।

फिर क्यूँ -- चोर  चोरी करता है ,भिखारी  भीख मांगता  है ,

व्यापारी सुबह से शाम तक सैंकड़ों ग्राहकों से झूंठ बोलकर ठगता है। .

इस तरह से कि गई कमाई को हर रिश्ता खाता और आनंद लेता है।

जब वक्त कर्मों के फल का आता है -तब वो उस फल को अकेला ही भोगता है।

नाम से दुनिया में कोई किसी नहीं जानता कर्मों से ही पहचाना जाता है।

ये सब कुछ जानने के बाद भी इंसान ऐसा क्यूँ करता है।

जब अंत इंसान का आता है जो भी तन पे होता है सब उतार लिया जाता है।

सब रिश्ते - नाते साथ छोड़कर दूर खड़े हो जाते है।

खाली हाथ ही इस संसार से उसे जाना  पड़ता है। …।

बस एक थोड़ी सी  जिंदगी जीने के लिए इतनी  मारामारी क्यूँ।

एक सराफत ,ईमानदारी ,इंसानियत ,प्यार -मोहब्बत से जिंदगी क्यूँ नहीं जीते।   

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* बिनेश कुमार * धन्यवाद * १/११/२०१३ *

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