* रिस्तों का अस्तित्व मिटने लगा है *
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दोस्तो --मैंने अपने वर्षों के किये गए सर्वे में जो देखा और महसूस किया है।
वो इंसानियत के रिस्तों के प्रति बेहद शर्मनाक और चिंता जनक है जोकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
ये तो सच और सही है कि आज हर जगह महिलाएं पुरषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं।
लेकिन दूसरी तरफ ये भी सच और सही है ,कि दिलों से रिस्तों के प्रति प्यार - मोहब्बत और मान -सम्मान
,का अस्तित्व मिटता जा रहा है।
हमसब निरंतर बेटी बेटे के फर्क को ख़त्म करने पर जोर दे रहे हैं दोनों को समान दर्ज़ा दे रहे हैं।
महिलाओं को अधिक से अधिक प्राथमिकता देने कि हर सम्भव कोशिश निरंतर करते रहते हैं।
वो कोशिश कौन करता है कोई भगवान् या चमत्कारी शक्ति तो नहीं है ये एक इंसान ही है।
फिर क्यूँ पुरषों को मान सम्मान नहीं मिल रहा।
शिक्षा का स्तर जितना ऊंचा बढ़ता जा रहा है ,वहीँ नैतिकता का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है।
सब एक जैसे तो नहीं है लेकिन जिनकी सोच विचार ऐसे हैं उन्हें भी बदलाव कि जरुरत है।
हमारी ७०% छात्राए ( लड़की ) में ये कमी है अपने पिता समान पुरुषों को मान सम्मान नहीं देतीं हैं।
बसों में सफ़र के दौरान बड़े बुजर्ग खड़े होकर सफ़र करते हैं और हमारी छात्राए (बेटियां ) सीट पर बैठी रहतीं हैं
और महिला भी छात्रा को ना उठा कर बड़े बुजर्ग को उठा देती हैं और सीट कि मांग करती है।
आज भी शहर के मुकावले गाँवों में शिक्षा का स्तर जितना नीचा है उतना ही ऊंचा मान -सम्मान का स्तर है।
ये सब कितना अजीव लगता है।
जो इंसान आपको इतना मान -सम्मान देता है और अपना पूरा जीवन तुम्हें ख़ुशी और सुख देने में बिता देता है।
क्या उस इंसान को मान सम्मान पाने का हक़ नहीं है।
ये सब ऐसा कब तक चलता रहेगा और कोई कब तक सहन करेगा।
हमारे दिलों से एक दूसरे के प्रति प्यार -मोहब्बत और मान सम्मान कब तक मिटता रहेगा।
क्या ये सोभा देता है. महिला और पुरुष एक दूसरे के लिए बराबर का सहारा हैं।
ये हमारे जीवन कि गाडी के दो पहिये हैं। . इन्हें सम्मान बराबर मिलना चाहिए।
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* बिनेश कुमार * २०/११/२०१३ *
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