“ ज्ञान के दीप तले अज्ञानता का अँधेरा “
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आज का युग ज्ञान के महासागर में बहुत गहराई तक पहुँच गया।
धरती का इंसान आज चाँद पर पहुँच गया।
घंटों का सफर कुछ मिनटों में तय हो गया।
जमीं पर चलने वाला इंसान आज हवा में आसमां को छूने लगा।
रात का अँधेरा दिन के उजाले में बदल गया।
आज इंसान ने ज्ञान के सागर से बहुत कुछ सीखा।
लेकिन इंसान ने खुद की गलती/कमी को स्वीकारना न सीखा।
कामयाबी की मिली सफलता में खुद के सर पर सेरा बंधा।
कामयाबी में मिली असफलता का ठीकरा दूसरे के सर पर ही फोड़ा।
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“ बिनेश कुमार “ २०/११/२०१४ “
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