Tuesday, 31 March 2015

बेजोड़ डोरी (बहाना )




बेजोड़  डोरी (बहाना )
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जन्म दिन हो या शादी की  सालग्रह हो।
होली दिवाली का पर्व हो या  नववर्ष का हो आना।
ये सब दिन हैं हमें एक दूजे के करीब रखने का एक बहाना ,.
हम अपनों से दूर रहें या पास ,
जब हम अपनों की याद में होते हैं उदास।
ये सब दिन जब होते हैं हमारे लिए खास।
ये बहाने बनकर हमें लाते हैं एक दूजे के पास।
ये दिन हम सब को छोटों की नाराजगी ,बड़ों की डांट से छुटकारा  दिलाते हैं।
हम सबको बहाना बनकर एक दूजे  के हमेशा करीब रखते हैं।  
यही है प्यार की बेजोड़ डोरी ( बहाना )  .
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* बिनेश कुमार * २३/१२/२०१४ *

“ तक़दीर की तस्वीर “






“ तक़दीर की तस्वीर “
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ए जिंदगी हम चाहें तो तक़दीर की तस्वीर बदल सकते हैं।
खुद दर्द में खुश रहकर दूसरों को ख़ुशी दे सकते हैं। 
हम अपनी एक मुस्कान से दूसरों को मुस्कान दे  सकते हैं।
हम रोते हुए इंसान को थोड़ी ख़ुशी देकर हंसी दे सकते हैं।
प्यार के दो शब्द  बोलकर  भूखे की भूख मिटा सकते हैं।
हम खुद ख़ुश रहकर दूसरे को ख़ुशी की राह दिखा सकते हैं..
हम अजनवी के दर्द को सुनकर अपनेपन का अहसास करा सकते हैं।
हम हर पल खुश रहकर जिंदगी की हर मंजिल को आसान बना सकते हैं।
हम इस तरह तक़दीर की तस्वीर खुद बदल सकते हैं।   
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:बिनेश कुमार :२७/११/२०१४ :

“ ज्ञान के दीप तले अज्ञानता का अँधेरा “



“ ज्ञान के दीप तले अज्ञानता का अँधेरा “
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आज का युग ज्ञान के महासागर में बहुत गहराई तक पहुँच गया।
धरती का इंसान आज चाँद पर पहुँच गया।
घंटों का सफर कुछ मिनटों में तय हो गया।
जमीं पर चलने वाला इंसान आज हवा में आसमां को छूने लगा।
रात का अँधेरा दिन के उजाले में बदल गया।
आज इंसान ने ज्ञान के सागर से बहुत कुछ सीखा।
लेकिन इंसान ने खुद की गलती/कमी को स्वीकारना न सीखा।
कामयाबी की मिली सफलता में खुद के सर पर सेरा बंधा।
कामयाबी में मिली असफलता का ठीकरा दूसरे के सर पर ही फोड़ा।
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“  बिनेश कुमार “ २०/११/२०१४ “

“ उच्चशिक्षा की ओर बढ़ते क़दमों तले ,


“ उच्चशिक्षा की ओर बढ़ते क़दमों तले , ”
अपने संस्कार दम इस तरह तोड़ने लगे।  
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जैसे -जैसे युग बदलने लगा ,उच्चशिक्षा का स्तर बढ़ने लगा।
विदेशी भाषाओं ओर संस्कारों के सामने अपने दफ़न होने लगे।
रिश्तों के आव-भाव संस्कृति वेश-भूषा में बदलाव आने लगा।
मम्मी पापा जैसे सम्मानित शब्दों को छोड़कर मोम डेड का प्रचलन होने लगा।
जो बहुऐं कभी सास ससुर के सामने घूँघट करके चलतीं थीं।
आज वे फैंशन के तौर पर खुले सिर बाँहों में बाँहें डालकर घूमने लगी।
दोस्ती का रिस्ता अब बॉय /गर्ल फ्रेंड के नाम से पहचाने जाने लगा।
जैसे जैसे ये रिस्ता अब रफ़्तार पकड़ने लगा।
वैसे वैसे शादी का अटूट बंधन बीच सफर में ही टूटने लगा।
आज के युग की ये सच्ची हकीकत है ये रिस्ता  एक हत्यार बनने लगा।
मात -पिता ,पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते को तोड़ने में अहमभूमिका निभाने लगा।
आज रिश्तों की कोई शर्मों -लिहाज न रही अब महफ़िल में हर रिस्ता झूमने  होने लगा।
माँ -बाप के सामने बेटी-बेटा नशे में धुत्त होकर महफ़िल में नाचने लगे।
शादी के सजे मंडप में आज दूल्हा दुल्हन भी थिरकने लगे।
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“” बिनेश कुमार “ १८/११/२०१४ “”

“ अहसास “






“ अहसास “
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अहसास एकता का दिल को हर मौका कराता है।
कुछ लम्हों के लिए दिल में ये अहसास जागता है।
दिवाली पर दीपों का प्रकाश ,पटाखों की आसमां में गूँज
होली के रंग एक साथ मिलकर संसार को रोशन करते हैं।
वो अहसास एकता का हमेशा हर दिल में जगाते हैं।
हम मदहोशी के नशे में  कुछ लम्हों बाद ही भूल जाते हैं।
यातायात के साधन भी अहसास एकता का हर दिल को कराते हैं।
वे सबको लेकर एक साथ उनकी मंजिल तक पहुंचाते हैं।  
अपनी मंजिल पाने के बाद सब ये अहसास भूल जाते हैं।
पतंग एक साथ आसमां में उड़कर ,फूल बगिया में खिलकर ,
ये प्यार ,अहसास एकता का हर दिल को दर्शाते हैं।
हम गरूर में अपने इंसानियत का रिस्ता भूल जाते हैं।
जीवन में हर मौका हमें बार-बार एक साथ जोड़ता है।
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“ बिनेश कुमार “ ३०/१०/२०१४ “  

“ अनमोल रिश्ता “





“ अनमोल रिश्ता “
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यूँ तो संसार में हमारे अनगिनत रिश्ते हैं।
जिनका किसी ने आंकलन कभी किया नहीं।
ये रिश्ता जो प्यारा -खुबशुरत और अनमोल है।
कुदरत ने जिसे खुद फुर्सत से बनाया है।
हर रिस्ता कुछ क़दमों का हमसफ़र मेहमान होता है।
ये रिश्ता जन्मभर  का हमसफ़र और कदरदान होता। है
कुदरत ने दो अंजानो को मिलाकर एक किया है।
जमाने ने इसे शादी का  नाम देकर अद्भुद तरीकों  सजाया है।
अग्नि के सात फेरों की  डोरी में इस रिश्ते को पिरोया है।
दोनों ने भरी महफ़िल में एक-दूजे को अपनाया  है।
हर ख़ुशी-गम में कदम से कदम मिलाकर साथ निभाया है।
जिसने भी इस रिश्ते का अपमान और खिलवाड़ किया है।
वो कभी किसी रिश्ते का सुख भोग नहीं पाया है।
ये रिस्ता संदा हर रिश्ते का माली बना है।
हर रिश्ते को पाल-पोस कर इसने बड़ा और कामयाब किया है।
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“ बिनेश कुमार “ २९/१०/२०१४ “प्रातः ३:३० “

“ फिर लौट आई वही रौनक






“ फिर लौट आई वही रौनक “
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चार दिनों के बाद सुनसान जगहों पर फिर लौटी रौनक।
हालात और व्ही करिश्मा कुदरत का देखो।
कहीं धूंप और कहीं छाया ,कभी ख़ुशी कभी गम ,
कहीं हुई रौनक तो कहीं सन्नाटा छाया।
घर परिवार में दिवाली पर ख़ुशी और एकता की रौनक छाई।
तो वहीँ दूसरी और स्कूल ,कालेज ,दफ्तरों में सन्नाटा छाया।
आज चार दिनों बाद ,स्कूल ,कालेज और दफ्तरों में रौनक लौटी।
अजनबियों से अपनेपन का अहसास प्यार फिर देखने को मिला।
वाही हफ्ते के ५-६ दिनो की चहल पहल देखने को मिली।
इसी को कहते हैं करिश्मा कुदरत का। …---
कहीं धूप ,कहीं छाया ,तो कहीं रौनक ,तो कहीं सन्नाटा छाया।
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“ बिनेश कुमार “ २७/१०/२०१४ “

LO VO AA GAYA






 “ लो वो आ गया  जिसका था आपको इन्तजार “
   “ आप सबका प्यारा ,सुहाना ,और दीवाना सर्दी का मौसम “
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इस मौसम का   अपने आप में  निराला उदेद्श्य है।
ये मौसम नम्रता ,संयम और प्रेमरस से भरा हुआ  है।
सर्दी के मौसम में हर एक को करीब लाने  की कशिश होती है।
भोजन ,कपडे ,शांत अग्नि और सूरज की नरम धूप हो।
हर इंसान के मन को भाता है।
ये हर इंसान के मन   में नम्रता और रिश्तों को करीब लाता है  
ये मौसम है सबसे प्यारा इसका स्वाद है सबसे न्यारा।
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बिनेश कुमार *१७ /१०/२०१४ *

SIKH-SUJHAV





“ सीख - सुझाव “
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दोस्तों -- सूरज की पहली किरण ,बारिस की बून्द उन्हीं पर पड़ती है।
जो आसमां के नीचे खुले आँगन में रहते हैं।
बन्दुक की गोली ,बॉस की डांट उन्हीं को लगती है।
जो सामने निशाने पर पड़  जाते हैं।
उसे वक्त ये दोनों छोटा-बड़ा और दोस्त-दुश्मन नहीं देखते।
इसमें न तो किसी को बुरा मानने वाली बात है।
और न किसी के दुश्मन के लिए ख़ुशी की बात है।
हमने अपने बड़ों को इस तरह दो भागों में बांटा है।
हम बड़ों को घर में मात-पिता का दर्जा देते हैं।
और ऑफिस में बॉस का दर्जा देते है। .
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बिनेश कुमार - १४/१०/१४