Tuesday, 26 November 2013

* वक्त के साथ बदलते हालात *




    * वक्त के साथ बदलते हालात  *
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*   बदलते वक्त के साथ हर आशियाने टूट जाते हैं।
वर्षों  का साथ भी एक दिन अचानक  छूट  जाता है। .

दिलों से बने प्यार के आशियाने भी टूट जाते हैं।
जैसे पतझड़ के मौसम में पेड़ों से पत्ते टूट जाते हैं।

दिलों के विश्वास से बने रिश्ते भी गलत फैमी के पत्थर से टूट जाते हैं।
कर्म हों अच्छे तो अजनवी -पराये  भी अपने बन जाते हैं।

जब कुदरत का कहर बरसता है -पर्वत -पहाड़ भी टूट कर बिखर जाते हैं।
बदलते मौसम के रुख से दरिया ,नदी -नाले भी एक दिन सुख जाते हैं।

दिलों में जब प्यार कि जगह नफ़रत हो तो अपने भी दुश्मन बन जाते हैं।
दुनिया  से चले जाने के बाद अपने व् पराये भी सब भूल जाते हैं।
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    * बिनेश कुमार * २२६/११/२०१३ *

Tuesday, 19 November 2013

* रिस्तों का अस्तित्व मिटने लगा है *




      * रिस्तों का अस्तित्व मिटने लगा है  *
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दोस्तो --मैंने अपने वर्षों  के किये गए सर्वे में जो देखा और महसूस किया है।
वो इंसानियत के रिस्तों के प्रति बेहद शर्मनाक और  चिंता जनक है जोकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
ये तो सच और सही है कि आज हर जगह महिलाएं पुरषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहीं हैं।
लेकिन दूसरी तरफ  ये भी सच और सही है ,कि दिलों से रिस्तों  के प्रति प्यार - मोहब्बत और मान -सम्मान
,का अस्तित्व मिटता जा रहा है।
हमसब निरंतर बेटी बेटे के फर्क को ख़त्म करने पर जोर दे रहे हैं दोनों को समान दर्ज़ा दे रहे हैं।
महिलाओं को अधिक से अधिक प्राथमिकता देने कि हर सम्भव कोशिश निरंतर करते रहते हैं।
वो कोशिश कौन करता है कोई भगवान् या चमत्कारी शक्ति तो नहीं है ये एक इंसान ही है।
फिर क्यूँ पुरषों को मान सम्मान नहीं मिल रहा।
शिक्षा का स्तर जितना ऊंचा बढ़ता जा रहा है ,वहीँ नैतिकता का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है।
सब एक जैसे तो नहीं है लेकिन जिनकी सोच विचार ऐसे हैं उन्हें  भी बदलाव कि जरुरत है।
हमारी ७०% छात्राए  ( लड़की ) में ये कमी है अपने पिता समान पुरुषों को मान सम्मान नहीं देतीं हैं।
बसों में सफ़र के दौरान बड़े बुजर्ग खड़े होकर सफ़र करते हैं और हमारी छात्राए (बेटियां ) सीट पर बैठी रहतीं हैं
और  महिला भी छात्रा को ना  उठा कर बड़े बुजर्ग को उठा देती हैं और सीट कि मांग करती है।
आज  भी शहर के मुकावले गाँवों  में शिक्षा का स्तर जितना नीचा है उतना ही ऊंचा मान -सम्मान का स्तर है।
ये सब  कितना अजीव लगता है।
जो इंसान आपको इतना मान -सम्मान देता है और अपना पूरा जीवन तुम्हें ख़ुशी और सुख देने में बिता देता है।
क्या उस इंसान को मान सम्मान पाने का हक़ नहीं है।  
ये सब ऐसा कब तक चलता रहेगा और कोई कब तक  सहन करेगा।
हमारे दिलों से एक दूसरे के प्रति प्यार -मोहब्बत और मान सम्मान कब तक मिटता रहेगा।
क्या ये सोभा देता है. महिला और पुरुष एक दूसरे के लिए बराबर का सहारा हैं।
ये हमारे जीवन कि गाडी के दो पहिये हैं। . इन्हें सम्मान बराबर मिलना चाहिए।
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* बिनेश कुमार * २०/११/२०१३ *    
 


Friday, 15 November 2013

* नई सोच नये युग को देखें *



        *   ॐ *

* नई सोच नये  युग को देखें *
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मेरे प्यारे देशवासियों - जो मैं जानता हूँ वो आप सब भी जानते हैं।
हमारे देश में भ्रष्टाचार ,दुर्व्यवहार ,अत्याचार , एक दीमक नाम के कीड़े कि तरह देश के हर कौने में फैल रहा है।
जिसकी आन -बान शान  को बचाये रखना हम  सबका फ़र्ज़ बनता है।
हमारे पूर्वज   वीरों ने जो देश के  खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया है।
वो सराहनीय  है। आज जब भी हम उनकी कुर्बानी को याद करते हैं तो आँखों से आंसू खुद बहने लगते हैं।
उन्होंने  ये अपने  या अपनों के लिए ही नहीं किया हमसब और देश  के लिए किया था।
आज जिन नेताओं को हमसब ने देश और देशवासियों कि रक्षा करने कि जिम्मेदारी सौंप रखी है।
इनमें से कोई भी उन महान सपूत वीरों के जैसे सोच-विचार और भावनाओं के नहीं है।

ये सबके सब महा स्वार्थी ,मतलबी , धोखे बाज़ गन्दी नज़र ,गन्दी सोच विचार वाले  हैं।       
ये तो अब हमसब को तय करना है कि देश व् देशवासियों की सुरक्षा  का दाईत्व सही ,सच व् ईमानदार के
हाथों में ही दें।
पार्टी जो भी हो - कांग्रेस ,भाजपा ,या कोई और जिसे हमसब वर्षों से देश के नाम पर राज करते हुए ,
हमसब ने देखा है और रिजल्ट क्या रहा वो सबके सामने है।
अब हमें उन नए लोगों को मौका देकर देखना चाहिए  जिन्हें कुछ करते हुए देखा नहीं।
जिन्होंने अपने कदम सिर्फ देश और देशवासियों के हित के लिए आगे बढाए हैं।
उनका साथ देकर उनकी हिम्मत व् हौंसला  हमसब को बढ़ाना चाहिए।
दोस्तों - सैनिक हो या खिलाड़ी ,या कोई हो देश सेवक  बिना मौका मिले कोई अपने आप को प्रूफ नहीं कर
सकता। आप भी बिना देखे ,परखे किसी पर कोई टिप्प्डी नहीं कर सकते।
अब अच्छा या बुरा करना तो आप हमसब के हाथों में है।
आज हमसब आजाद देश में आजाद होने के बाद भी खुद को गुलाम महसूस करते हैं।
न्याय और इन्साफ पाने के लिये  अपने दर्द ,तख़लीप, परेशानी खुद बयान  नहीं कर सकते।
मेरा किसी भी पार्टी से कोई लेना देना नहीं है ,, मैं भी आप सब कि तरह देश का नागरिक हूँ।
देश में अमन चैन  और इन्साफ , देश का हित चाहता हूँ।
भ्रष्टाचार , दुर्व्यवहार , अत्याचार , मुक्त देश देखना चाहता हूँ।
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* * जय हिन्द जय भारत **

* बिनेश कुमार * १५/११/२०१३ * प्रात : ४ बजे *                                                                                     


Monday, 11 November 2013

* ॐ * * देखो भाई सर्दी आई *

 

   * ॐ *  * देखो भाई सर्दी आई  *
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देखो भाई सर्दी आई ,सर्दी आई।
ये ४ महीने  अक्टू ,नवंबर ,दिस ,जन , सर्दी के होते  भाई..
सर्दी में सूरज कि धीमी रौशनी सबके मन को भाती  भाई।
हर कोई सूरज कि धीमी रौशनी का इन्तजार करता है भाई।!
देखो भाई  सर्दी आई , सर्दी आई !!

*अग्नि भी सर्दी को देखकर शरमा  जाती है भाई।
सर्दी खाने -पिने और कपडे  पहनने का मौका लेकर आती भाई।
गरमा -गर्म -समोसे,पकौड़े ,पराठे , चाय के साथ सबको भाते भाई।
इंसानों को ख़ुशी , और पशु -पक्षियों  को गम (दर्द )  सर्दी लेकर आती है भाई। !
डाँक्टरों के तो सोने पे सुहागा कर देती है सर्दी भाई।
किसी को खांशी तो किसी को जुकाम सर्दी में रहता है भाई।!
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** बिनेश कुमार * ११/११/२०१३ * *

Tuesday, 5 November 2013

* शायरी अंदाज *

* शायरी अंदाज *
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दोस्तों --मैं तो वो तारा हूँ जो कभी चमकता नहीं है।
मुझे कोई दिल से और प्यार से याद करे तो उससे दूर नहीं हूँ।
मैं मिलने से मजबूर हो सकता हूँ, मैं उन्हें दिल प्यार ना करूँ इतना मजबूर नहीं हूँ।
जो मुझे चाहते हैं मैं उन्हें चाहता हूँ।
वे मुझे मतलब  से चाहते हैं मैं  उन्हं दिल से बिना मतलब के चाहता हूँ।

जो हकीकत मुझे दर्पण न दिखा सका।
वो हकीकत मुझे मेरी परछाई ने इस तरह दिखा दिया।
मेरे लिखे शब्दों को जो लिखकर सो नहीं कर पाते कि पसंद उन्हें  आते हैं।
वे मुझसे मिलने पर खुद ये बताते हैं  कि शब्द मेरे लिखे उन्हें बहुत पसंद आते हैं।   

दोस्तों -प्यार मोहब्बत दिलों में वो अहसास है।
जो अपने और अपने जैसों के दर्द -गम ,ख़ुशी और कामयाबी बताने -दिखाने कि जरुरत नहीं पड़ती।
उन्हें उनके दर्द ,ख़ुशी बिन बताये ,बिन जताए बीना देखे ही।
उनकी आहट से चेहरा देखकर  दूर से ही परख लेते हैं।
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*  बिनेश कुमार * ४/११/२०१३ *

Friday, 1 November 2013

* ॐ * मैं और मेरी तन्हाई *


* ॐ   *  मैं और मेरी तन्हाई  *
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* मैं और मेरी तन्हाई अक्सर एकांत में एक -दूसरे से ये बातें करते हैं।

ये दुनिया  ये रिश्ते आखिर क्या हैं , ये सिर्फ  महज एक दिखावा  है। .

जब इंसान का जन्म होता है वो बिकुल अकेला होता है।

रिश्ते तो जन्म के बाद बनते हैं --मतलब के लिए। ….

किसी को बेटा -बेटी , भाई -बहन,, तो  किसी को पति - पत्नी  चाहिए।

फिर क्यूँ -- चोर  चोरी करता है ,भिखारी  भीख मांगता  है ,

व्यापारी सुबह से शाम तक सैंकड़ों ग्राहकों से झूंठ बोलकर ठगता है। .

इस तरह से कि गई कमाई को हर रिश्ता खाता और आनंद लेता है।

जब वक्त कर्मों के फल का आता है -तब वो उस फल को अकेला ही भोगता है।

नाम से दुनिया में कोई किसी नहीं जानता कर्मों से ही पहचाना जाता है।

ये सब कुछ जानने के बाद भी इंसान ऐसा क्यूँ करता है।

जब अंत इंसान का आता है जो भी तन पे होता है सब उतार लिया जाता है।

सब रिश्ते - नाते साथ छोड़कर दूर खड़े हो जाते है।

खाली हाथ ही इस संसार से उसे जाना  पड़ता है। …।

बस एक थोड़ी सी  जिंदगी जीने के लिए इतनी  मारामारी क्यूँ।

एक सराफत ,ईमानदारी ,इंसानियत ,प्यार -मोहब्बत से जिंदगी क्यूँ नहीं जीते।   

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* बिनेश कुमार * धन्यवाद * १/११/२०१३ *