: युग के साथ बदला इंसान :
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जैसे -जैसे युग बदल रहा !
वैसे इंसान भी बदल रहा !
रिश्तों के बंधन की डोर टूट रही !
शिष्टाचार पे ब्र्हष्टाचार भारी पड रहा !
रिश्तों का आत्म सम्मान अब स्वाभिमान बन रहा !
धन-दौलत के चक्कर में रिश्ते कण -कण होकर बिखर रहे !
न उम्र का बंधन ,न रिश्तों का लिहाज शोषण सर चढ़कर बोल रहा !
आज शिक्षित होकर इंसान अज्ञानता के अन्धकार में डूब रहा !
आज इंसान के हाथों इंसान कदम -कदम पर अपमानित हो रहा !
आज पुण्य से पाप चार कदम आगे बढ़ रहा !
: बिनेश कुमार : २१/१२/२०१५ :
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