* कविता - जीवन में पल -पल बदलते रिस्ते *
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तुम फुलवारी हो हमारे आँगन की।
तुम खुशबू बनकर महकोगी साजन के आँगन की।
तुम नन्नी पारी हो हमारे आँगन की ।
तुम शोभा बनोगी साजन के आँगन की।
तुम्हारा बचपन बीता हमारे आँगन में।
तुम्हारा बाकी जीवन बीतेगा साजन के आँगन में।
तुमने बचपन के सुख -दुःख अपने हमसे बांटे।
तुम बाकी जीवन के सुख -दुःख अपने साजन से बांटोगी।
जब जन्म तुम्हारा हुआ ख़ुशी हमारे आँगन में आई।
जब जीवन का अंत होगा गम के आँसू बहेंगे साजन के आँगन में।
तुम जीगर का टुकड़ा हो हमारे दिल का।
तुम धड़कन बनोगी साजन के दिल की।
जब तुम बचपन के रिस्तों से दूर जाओगी।
तुम्हें साजन के घर पर नए रिस्तों की सौगात तौफे में मिलेगी।
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* बिनेश कुमार * ७ मार्च २०१४ ,* प्रात : ४ बजे *
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