Monday, 24 March 2014

* शायरी अंदाज - करिश्मा कुदरत का *




* शायरी  अंदाज - करिश्मा कुदरत का *
 -------------------------------------------


हर एक की चाहत होती है अपना जीवन खुश रहकर जीना यारो।
उनके दर्द हर वक्त साथ रहते हैं उनका साया बनकर यारो।

जीना तो हर कोई चाहता है ख़ुशी से दर्द उनके जीने नहीं देते यारो।
किसी की चाहत नहीं होती कोई नशा करके शुकून से सोये  यारो।

उनके बेदर्दी दर्द बिना नशा किये शुकून से सोने नहीं देते यारो।
ये अजीबो -गरीब करिश्मा कुदरत का देखो यारो।

वक्त की नजाकत को पहचानो यारो।
जो कभी किसी से नहीं डरता था यारो।

आज वो खुद अपनी परछाई से डरता है यारो।
जो शेर का शिकार करने की हिम्मत रखते हैं यारो।

वे भी एक दिन अपनी गली के कुत्ते से डरते हैं यारो।
इसी को कहते हैं खेल कुदरत का यारो।
      ************

** बिनेश कुमार  *  २८ फरवरी ,२०१४ **


कविता - जीवन में पल -पल बदलते रिस्ते



* कविता - जीवन में पल -पल बदलते रिस्ते *
      -------------------------------------

तुम फुलवारी हो हमारे आँगन की।
तुम खुशबू बनकर महकोगी साजन के आँगन की।

तुम नन्नी पारी हो हमारे आँगन की ।
तुम शोभा बनोगी साजन के आँगन की।

तुम्हारा बचपन बीता हमारे आँगन में।
तुम्हारा बाकी जीवन बीतेगा साजन के आँगन में।

तुमने बचपन के सुख -दुःख अपने हमसे बांटे।
तुम बाकी जीवन के सुख -दुःख अपने साजन से बांटोगी।

जब जन्म तुम्हारा हुआ ख़ुशी हमारे आँगन में आई।
जब जीवन का अंत होगा गम के आँसू बहेंगे साजन के आँगन में।

तुम जीगर का टुकड़ा हो हमारे दिल का।
तुम धड़कन बनोगी साजन के दिल की।

जब तुम बचपन के रिस्तों से दूर जाओगी।
तुम्हें साजन के घर पर नए रिस्तों की सौगात तौफे में मिलेगी।
               ***************

* बिनेश कुमार * ७ मार्च २०१४ ,* प्रात : ४ बजे *

SHAYRI ANDAJ





* शायरी अंदाज --वक्त से पहले किस्मत से ज्यादा कभी नहीं मिलता *
-----------------------------------------------------------------------------



किस्मत में लिखा बेवक्त ही दिखता है यारो।
जो अचानक होता उसी को हम  अनहोनी कहते हैं यारो।

उन्हें तो लोग शराबी समझते हैं यारो।
ये कोई नहीं जानता वे तो किस्मत के मारे हैं।

लोग कहते हैं शराब पीना खराब है यारो।
तन्हाई में अकेले को एक शराब ही तो सहारा देती है यारो।

उनके प्यार को लोग मतलबी और गलत समझते हैं यारो।
वे तो प्यार के बदले प्यार देकर अपना फ़र्ज़ निभाते हैं यारो।

पल -पल में रंग बदलते हैं ख़ुशी और गम के यारो।
सागर की  लहरों की तरह ये आते -जाते हैं यारो।

ए मालिक मेरे हम बन्दे हैं तेरे तू हमें इतने ख़ुशी -गम ना दे।
जो हम तुझे भूल कर उन्हें याद करने लगें हम।

हम प्यार पाने के लिए इन्तजार करते हैं ऐसे।
सूरज की पहली किरण का फूल खिलने के लिए इन्तजार करते हैं जैसे।
      ******************




* बिनेश कुमार * ४मर्च २०१४ *  


* होली * भाग २ *




 * होली * भाग २ *
   ----------------



फागुन का महीना आया।
साथ में खुशियों की सौगात लाया।

चारों तरफ रंग बिरंगे फूल खिलने लगे।
खेतों में हर तरफ फसलें लहराने लगीं।

किसानों के मन ख़ुशी में झूमने लगे।
मन बहारों के गीत गाने लगे।

होली आई आपके हर रिस्ते को करीब लाई।
नए पुराने रिस्तों की सौगात साथ लेकर आई।

होली में सब रंग मिलकर एक हुए।
दिलों से दिल मिले आपस के गिल्ले सिक्वे दूर हुए।

होली में तरह तरह के पकवानों ने धाक जमाई।
होली आई होली आई खुशियां अपार लेकर आई।
       *************



*  बिनेश कुमार *१५ मार्च २०१४ *




प्रथम अंक :               ऒम श्री गणेश :                १२ मई २०१४ :




                        --------------------------.
                            फोटो






                  * जिंदगी का सफ़र *



: ये पुस्तक प्रत्येक इंसान के जीवन पर आधारित है ,
जो अपने -पराये से मिले सुख -दुःख ,ख़ुशी -गम पर रचित रचनाओं से लिखी गई है :
                    




लेखक : बिनेश कुमार

* इतना फर्क क्यूँ *

  


* इतना फर्क क्यूँ *
          ------------------------



जब रब ने हर इंसान को समान बनाया।
फिर इंसान इंसान की सोच में फर्क क्यूँ आया।
जब ख़ुशी गम का अहसास एक जैसा है।
फिर स्त्री पुरुष की सोच में इतना फर्क कैसे है।
जब स्त्री को ख़ुशी गम मिले तो वो आंसू बहाती है।
जब पुरुष को ख़ुशी गम मिले तो वो नशे में खुद डूबता है क्यूँ।
रब ने स्त्री पुरुष को एक दूजे का सहारा बनाया।
फिर दोनों के सोच विचार भिन्न -भिन्न क्यूँ।
दोनों के दिलों में प्रेम कम अहंकार ज्यादा क्यूँ।
रब ने दोनों को एक साथ मिलाकर ख़ुशी बनाई।
फिर इंसान ने विश्वास घात करके दर्द बनाया क्यूँ।
रब ने जिंदगी ख़ुशी से जीने को हमें दी।
फिर इंसान ने खुद मौत को अपनाया क्यूँ।
खुद इंसान ही इंसान को दर्द देकर  दुश्मन बना क्यूँ।   
          *  -----------------*



     * बिनेश कुमार * २४ मार्च २०१४ *