Sunday, 5 May 2013

satyug aur kal yug

*  सतयुग  और कलयुग   *
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वक्त एक गोल चक्र के समान  है ,जिसका  ना कोई आरम्भ  और ना अंत  दिखाई  देता  है !
बस वो समय  के साथ -साथ  चलता रहता है !
आज से सदियों  पहले  सतयुग  का राज  था ,जिसमें भी अपराध  और अपराधी  थे .
जिन पर महाभारत  और रामायण  जैसे ग्रन्थ  लिखे गये   है उस  समय भी नारी जाति  पर अत्याचार होते थे !
जब -जब धरती पर पाप बढ़ा , जब -जब  कुदरत ने पाप का विनाश करने के लिए धरती पर इंसानों के रूप में
राम , कृषण  जैसे अवतार को जन्म  दिया ,इस  तरह से रावन  और कंश  जैसे पापियों  का अंत हुआ !
 इस सतयुग  में इंसान  दुसरे  इंसान को देखकर खुश होता था , उसकी हिम्मत बढ़ जाती  थी एक इंसानियत के
रिश्ते का एक दुसरे के प्रति प्रेम भावना  थी !
हर एक रिश्ते का मान सम्मान  होता था ,माता -पिता , भाई -बहन ,पति -पत्नी आदि रिश्ते  एक दुसरे का गरूर हुआ करते  थे ,ये सब रिश्ते हमारे त्योहारों  की रोनक थी !
इस सतयुग में राजाओं  का राज था न्याय  होता अपराधी को सजा दी जाती थी और रिश्तों की दुहाई आज भी दी जाती है !

आज  सदियों  के बाद कलयुग  का राज चल रहा  है ,जिसमें तरह -तरह के घिनोने अपराध दिन प्रति दिन जन्म
ले रहे है ,कोई रोकने वाला ही नहीं है ,!
आज ना तो बहन ,बेटी पत्नी ,माँ ,इन सब की इज्जत बिखरी हुई है  ,कोई समेटने  वाला नहीं !
आज भाई  बहन की राखी की क्या कीमत होती है सब भूल गए ,पिता और बेटी का क्या रिश्ता होता है भूल गए !
जो बचपन कभी अपने बड़ों का सहारा लेकर उनकी ऊँगली पकड़ कर सँभालते  थे आज वही बचपन अपनों से
डरने लगा है ,दूर  से बचकर निकलने लगा है !
आज  कलयुग में कानून  का राज है जिसमें सत की कोई कीमत नहीं ,सच अपना दम तोड़ रहा है ,झूठ तेजी से बढ़
रहा है
बस इन्तजार है तो किसी अवतार के जन्म लेने का जो आकर इस काले कलयुग  का अंत कर देगा 

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   * बिनेश कुमार * ५/५/१३ .

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