Wednesday, 30 April 2014

* अपने ही अपनों पे ढाहते हैं जुल्मो शितम *




  * अपने ही अपनों पे ढाहते हैं जुल्मो शितम  *
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जहाँ  लोग गर्व से खुद को कहते हिन्दुस्तानी।
वहां पे लोग बोलते हैं जाति -वाद और धर्म की वाणी।

भिन्न -भिन्न है खान-पान भिन्न -भिन्न शिक्षा की वाणी।
ये कैसा देश है भाई फिर सब खुद को कहते हिन्दुस्तानी।

यहां कदम -कदम पर मोह -माया की लूट  मची है।
कामयाबी की खातिर दूसरों के साथ साजिश रची है।

इंसानियत और प्यार के रिश्तों पर मार पड़ी है।
यहां बड़े हमेशा छोटों पर करते तानाशाही।

यहाँ सुख में हर कोई किसी का साथी है ,
दुःख में ना कोई किसी का साथी है। .

हक़ जिसका उसे कभी हक़ मिलता नहीं।
जहां एकता की दुहाई देते हैं वहां दिलों में प्यार दिखता नहीं।

यहां अपनों ने ही अपनों को बांटा जाति -धर्म में मतलब के खातिर।
जहां इंसान ही इंसान को पहनता नहीं आगे बढ़ने की खातिर।

जन्म का तरीका एक,शरीर की रचना एक ,खून का रंग सबका एक।
फिर भी सबकी सोच -विचारधारा क्यूँ अनेक।
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   * बिनेश कुमार * २८ अप्रैल २०१४ *

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