Sunday, 7 July 2013

kudrat ki lilaa

             * कविता  - कुदरत  की लीला  *           --------------------------------------------

ये देखो कुदरत की अजीबो - गरीब  लीला है  !
कहीं धूंप ,कहीं छाया ,तो कहीं भरा पानी ,कहीं पड़ा  सुखा  है !
कहीं तरस रहे हैं पानी की एक -एक बूंद के लिये  !
 तो कहीं परेशान  हैं पानी के बहाव  से बचने  के लिये !
कहीं पर यग करते हैं लोग पानी को रोकने के लिये !
तो कहीं पर यग करते एक -एक बूंद पानी की आस -उम्मीद के लिये  !
ये ऐसी  है कुदरत की फितरत  लीला !
कहीं पर पड़ा  सुखा ,तो कहीं पर पड़ा है  गीला !
कहीं पर पानी की लम्बी ऊँची लहरें लोगों की जान  ले रहीं है !
तो कहीं पर पानी की एक बूंद के बगैर  लोगों की जान जा रही है !!
किसी की चौड़े में ले लेती जान है ,तो किसी को मौत के मुँह से बचाकर देती जिन्दगी है !
ये ऐसी  ही है कुदरत की अजीबो -गरीब लीला है !
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        * बिनेश कुमार  * ७/७/१३. *

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