के सफर में .
अनेक सपने सजोय .
परिन्दों के घरोंदे जैसे नाजुक
कुछ सपने पुरे हुए .
कुछ चलते चलते टूट गए .
सफर के कुछ मोड पर
अपनों का साथ छूट गया .
चाहतों के बीच भवर में
मेरा जीवन फस कर रह गया .
दुसरों की खुवाईश पुरी करते करते
अपनी खुवाईशें भूल गया .
ज़िन्दगी ओर चाहतों की लडाई में
मैं सुख का आनन्द लेना भूल गया .
ज़िन्दगी के आखिरी सफर में
खामोश होकर ज़ाहान से चला गया .
ज़िन्दगी के इस सफर में
कौन है अपना कौन पराया
ये फर्क समझ नही पाया .
मैं जैसे जग में आया .
वैसे ही जग से चला गया .
मोह माया का बन्धन
बंधा ही रह गया .
-----------------
*बिनेश कुमार *2/2/2018 *
अनेक सपने सजोय .
परिन्दों के घरोंदे जैसे नाजुक
कुछ सपने पुरे हुए .
कुछ चलते चलते टूट गए .
सफर के कुछ मोड पर
अपनों का साथ छूट गया .
चाहतों के बीच भवर में
मेरा जीवन फस कर रह गया .
दुसरों की खुवाईश पुरी करते करते
अपनी खुवाईशें भूल गया .
ज़िन्दगी ओर चाहतों की लडाई में
मैं सुख का आनन्द लेना भूल गया .
ज़िन्दगी के आखिरी सफर में
खामोश होकर ज़ाहान से चला गया .
ज़िन्दगी के इस सफर में
कौन है अपना कौन पराया
ये फर्क समझ नही पाया .
मैं जैसे जग में आया .
वैसे ही जग से चला गया .
मोह माया का बन्धन
बंधा ही रह गया .
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*बिनेश कुमार *2/2/2018 *
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