Wednesday, 24 July 2013

poem -sikh

      * सीख  *
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सूरज और चाँद -तारों से आओ कुछ हम सीख लें !
बिना मतलब ,बिना  भेदभाव  करे हम फ़र्ज़  निभाना  सीख लें !
कम अगर हो तो  हवा ,पानी ,आग से भी कुछ सीख लें !
जैसे सूरज  और चाँद -तारे  अपनी रौशनी ,और चांदनी दूसरों को देते है !
फिर हम इंसान क्यूँ अपने में ऐसी सोच रखते है !
वक्त बदलते ही गिरगिट की तरह क्यूँ रंग बदलते  हैं !
दोस्ती को मतलब के लिए क्यूँ इस्तेमाल करके बदनाम करते हैं !
जब कोई जन्म लेता है -वो एक इन्सान होता है .
न हिन्दू , न मुसलमान न सिख और न ईसाई होता है !
कुदरत ने नाम ,जाति, धर्म  एक पहचान  के लिए हमें दिए  हैं !
कुदरत ने जन्म हमें दिया  इस संसार रूपी बगिया को प्यार ,एकता से साफ़ -सुंदर बनाने के लिए !
फिर हम इन्सान क्यूँ छोटा-बड़ा , गरीब -अमीर भेदभाव नाम के कांटे बोकर -
इस बगिया को बद  सूरत क्यूँ बनाते है !
प्यार की जगह नफरत करके एक -दुसरे से हम संसार में गंद क्यूँ फैलाते है !
ये तेरा है ये मेरा है करके हम एक दुसरे की जान क्यूँ लेते है !
कुदरत कभी भेदभाव नहीं करती . ये आप केदारनाथ ,बद्रीनाथ , देहरादून के कहर से सीख़ लो !
कुदरत हमें खाली हाथ  जन्म देती है और खाली ही  हाथ हमारा अंत करती है !
आओ हम सब कुदरत के करम से कुछ सीख़ लें
इंसानियत के रिश्ते से प्यार -मोहब्बत , एकता से संसार रूपी बगिया को हम सींच लें !
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     * बिनेश कुमार  * २३/०७/२०१३ *   धन्यवाद *

Sunday, 7 July 2013

kudrat ki lilaa

             * कविता  - कुदरत  की लीला  *           --------------------------------------------

ये देखो कुदरत की अजीबो - गरीब  लीला है  !
कहीं धूंप ,कहीं छाया ,तो कहीं भरा पानी ,कहीं पड़ा  सुखा  है !
कहीं तरस रहे हैं पानी की एक -एक बूंद के लिये  !
 तो कहीं परेशान  हैं पानी के बहाव  से बचने  के लिये !
कहीं पर यग करते हैं लोग पानी को रोकने के लिये !
तो कहीं पर यग करते एक -एक बूंद पानी की आस -उम्मीद के लिये  !
ये ऐसी  है कुदरत की फितरत  लीला !
कहीं पर पड़ा  सुखा ,तो कहीं पर पड़ा है  गीला !
कहीं पर पानी की लम्बी ऊँची लहरें लोगों की जान  ले रहीं है !
तो कहीं पर पानी की एक बूंद के बगैर  लोगों की जान जा रही है !!
किसी की चौड़े में ले लेती जान है ,तो किसी को मौत के मुँह से बचाकर देती जिन्दगी है !
ये ऐसी  ही है कुदरत की अजीबो -गरीब लीला है !
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        * बिनेश कुमार  * ७/७/१३. *